सफलता की कहानी: शहतूत के पेड़ और रेशम के उत्पादन से मिली नई आजीविका…

स्वरोजगार की ऐसी कहानी सुनने को मिली जो कि निश्चित रूप से सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है। ग्राम पंचायत चितालंका के स्व-सहायता समूह की दीदीयों ने रेशम कीट का पालन करके अपनी जिंदगी को सुनहरा बना लिया है। कभी आर्थिक संकट का सामना कर रहे समूह की दीदीयों के पास अब आय का मजबूत और सार्थक जरिया है।

रेशम केन्द्र चितालका में कार्यरत महिला रेशम कृमिपालन समिति चितालंका की महिलाए विगत वर्षों से शहतूती रेशम कृमिपालन का कार्य कर ही है। वर्ष 2021-22 के अन्तर्गत महिलाओं द्वारा तीन फसले ली गई। जिनमें कुल 1150 स्वस्थ डिम्ब समूह की 10 महिलाओं द्वारा कृमियों का कृमिपालन कार्य किया गया।

कृमिपालन पश्चात् उत्पादित मलबरी कोसाफल को विक्रय कर महिलाओं को 1 लाख 17 हजार 650 रूपये प्राप्त हुए इस प्रकार महिलाओं को प्रतिफसल 4900 रूपये से अधिक की राशि प्राप्त हुई। इसके अलावा महिलाओं द्वारा केन्द्र में लगाए गए शहतूत के पौधों के रखरखाव का कार्य समूह की 12 महिलाओं द्वारा  किया जा रहा है, जिसमें 1 लाख 74 हजार 335 रुपये की आमदनी प्राप्त हुई।

पौधा संधारण कार्य से प्रति महिला 14 हजार 500 रूपये से अधिक की राशि प्राप्त हुई।

रेशम योजनाओं से संबंधित कार्य में संलग्न केन्द्र की महिलाओं को कृमिपालन कार्य एवं पौध संधारण कार्य से औसतन 19 हजार 400 रूपये की आमदनी प्राप्त हुई। रेशम योजना से प्राप्त हो रहे अर्थिक लाभ से महिलाएं सन्तुष्ट है, उनकी जीवन शैली में सकारात्मक प्रभाव आया है। शासन द्वारा प्रदाय किए जा रहे रोजगार के साधन से समूह की महिलाएं लाभान्वित हो रही हैं।

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