मन की बात : प्रधानमंत्री ने युवाओं को दिया बड़ा संदेश, पढ़िए बातें…

कहा -दुनिया की प्राचीन भाषा तमिल न सीख पाना मेरी सबसे बड़ी कमी

नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महीने के आखिरी रविवार को अपने रेडियो प्रोग्राम `मन की बात` कार्यक्रम को संबोधित किया। यह मन की बात की 74वीं कड़ी थी । प्रधानमंत्री मोदी ने संबोधन के शुरू में पानी बचाने के महत्व के बारे में बताया

। पीएम ने कहा, कल माघ पूर्णिमा का पर्व था। माघ महीना विशेष रूप से नदियों, सरोवरों और जलस्रोत्रों से जुड़ा हुआ माना जाता है। माघ महीने में किसी भी पवित्र जलाशय में स्नान को पवित्र माना जाता है। इस दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में पानी बचाने के अभियान में जुटे लोगों के बारे में बताया।

पीएम ने अपील की कि गर्मी में पानी का संकट न आए, इसके लिए अभी से पानी बचाया जाना चाहिए।

उन्होंने जल स्रोतों की सफाई की अपील भी की। संत रविदास का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये मेरा सौभाग्य है कि मैं संत रविदास जी की जन्मस्थली वाराणसी से जुड़ा हुआ हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि युवाओं को कोई भी काम करने के लिये, खुद को, पुराने तौर तरीकों में बांधना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया। मैं तमिल नहीं सीख पाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये एक सुंदर भाषा है।

जानिए पीएम मोदी के संबोधन की बड़ी बातें-

इस बार हरिद्वार में कुंभ भी हो रहा है। जल हमारे लिए जीवन भी है, आस्था भी है और विकास की धारा भी है। पानी एक तरह से पारस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। कहा जाता है पारस के स्पर्श से लोहा, सोने में परिवर्तित हो जाता है। वैसे ही पानी का स्पर्श जीवन के लिए जरूरी है।
मेरे प्यारे देशवासियो, जब भी माघ महीने और इसके आध्यात्मिक सामाजिक महत्त्व की चर्चा होती है तो ये चर्चा एक नाम के बिना पूरी नहीं होती। ये नाम है संत रविदास का।

माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास की जयंती होती है।


संत रविदास कहते थें- करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस। कर्म मानुष का धम्र है, सत् भाखै रविदास।। अर्थात हमें निरंतर अपना कर्म करते रहना चाहिए, फिर फल तो मिलेगा ही मिलेगा, कर्म से सिद्धि तो होती ही होती है।

संत रविदास ने समाज में व्याप्त विकृतियों पर हमेशा खुलकर अपनी बात कही। उन्होंने इन विकृतियों को समाज के सामने रखा। उसे सुधारने की राह दिखाई। तभी तो मीरा ने कहा था- `गुरु मिलिया रैदास, दीन्हीं ज्ञान की गुटकी।`
हम अपने सपनों के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहें, ये बिलकुल ठीक नहीं है। जो जैसा है वो वैसा चलता रहे, रविदास कभी भी इसके पक्ष में नहीं थे। आज हम देखते हैं कि देश का युवा भी इस सोच के पक्ष में बिलकुल नहीं है।

आज ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस भी है।

आज का दिन भारत के महान वैज्ञानिक, डॉक्टर सी.वी. रमन द्वारा की गई ‘Raman Effect’ खोज को समर्पित है। केरल से योगेश्वरन ने नमो एप पर लिखा है कि रमन इफ़ेक्ट की खोज ने पूरी विज्ञान की दिशा को बदल दिया था।
जब हम विज्ञान की बात करते हैं तो कई बार इसे लोग फिजिक्स-केमिस्ट्री या फिर लैब्स तक ही सीमित कर देते हैं,

लेकिन विज्ञान का विस्तार इससे कहीं ज्यादा है और ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ में विज्ञान की शक्ति का बहुत योगदान है।
हैदराबाद के चिंतला वेंकट रेड्डी के एक डॉक्टर मित्र ने उन्हें एक बार विटामिन-डी की कमी होने वाली बीमारीयां और इसके खतरे के बारे में बताया। रेड्डी किसान हैं, उन्होंने मेहनत की और गेहूं-चावल की ऐसी प्रजातियां विकसित की जो खास तौर पर विटामिन-डी से युक्त है।
जब आसमान में हम अपने देश में बने लड़ाकू विमान तेजस को कलाबाजिंयां खाते देखते हैं, तब भारत में बने टैंक, मिसाइलें हमारा गौरव बढ़ाते हैं। जब हम दर्जनों देशों तक मेड इन इंडिया वैक्सीन को पहुंचाते हुए देखते हैं तो हमारा माथा और ऊंचा हो जाता है।

गुजरात के पाटन जिले में कामराज भाई चौधरी ने घर में ही सहजन के अच्छे बीज विकसित किए हैं। इसे मोंगिया या ड्रम स्टिक भी कहते हैं।
कोलकाता के रंजन ने अपने पत्र में बहुत ही दिलचस्प और बुनियादी सवाल पूछा है और साथ ही, बेहतरीन तरीके से उसका जवाब भी देने की कोशिश की है।
आत्म निर्भर भारत की पहली शर्त होती है- अपने देश की चीजों पर गर्व होना, अपने देश के लोगों द्वारा बनाई वस्तुओं पर गर्व होना। जब प्रत्येक देशवासी गर्व करता है, प्रत्येक देशवासी जुड़ता है, तो आत्मनिर्भर भारत सिर्फ एक आर्थिक अभियान न रहकर एक राष्ट्रीय भावना बन जाता है।
आप हमारे मंदिरों को देखेंगे तो पाएंगे कि हर मंदिर के पास तालाब होता है।

हजो में हयाग्रीव मधेब मंदिर, सोनितपुर के नागशंकर मंदिर और गुवाहाटी में उग्रतारा मंदिर के पास इस प्रकार के तालाब हैं। इनका उपयोग विलुप्त होते कछुओं की प्रजातियों को बचाने के लिए किया जा रहा है।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान कुछ समय से वार्षिक जलीयपक्षी सर्वेक्षण करती आ रही है। इस सर्वेक्षण से जल पक्षियों की संख्या का पता चलता है और उनके पसंदीदा रहवास की जानकारी मिलती है।

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